A poem devoted to the Motherland, encouraging the youth to work for the country, to consider their responsibilities for the nation.
गीत लिखता हूँ कलम से वार करता हूँ
दुश्मनों के कफ़न भी तयार करता हूँ
मौत को मेरी कलम की नोक चुभती है
जिंदगी ललकार सुन कर कांप उठती है
मैं वतन की आबरुह से प्यार करता हूँ
गीत लिखता हूँ कलम से वार करता हूँ
एक दिन चितोढ़ की तकदीर डोली थी
तब कलम मेरी राणा से बोली थी
आज माँ को है ज़रूरत ऊन सपूतों की
जो बनादे खाक में कब्रें कमीनो की
और तब खेली गयी थी खून की होली
लाल रंग में रंग गयी थी मौत की चोली
नौजवान जागो तुम्हे होशियार करता हूँ
गीत लिखता हूँ कलम से वार करता हूँ
हे कसम तुमको जवान तुम्हारी जवानी की
राम ईसा की मोहमद की और भवानी की
बर्बाद कर दो दुश्मनों के सर कुचल दो तुम
गदार के सीने में छिपे अरमान मसल दो तुम
मैं चलूँगा साथ कब इंकार करता हूँ
गीत लिखता हूँ कलम से वार करता हूँ
गीत लिखता हूँ कलम से वार करता हूँ
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